Ranchi: चोरों की दुनिया में भी अब मानवाधिकार जाग उठे हैं! रांची में एक दिलचस्प और व्यंग्यपूर्ण मामला सामने आया है जहां चोरी करने गए चोर, खुद थाने पहुंचकर बोले, “हमें बहुत पीटा गया… और हमारे पैसे भी छीन लिए!”
अब भला बताइए, ये कोई तरीका है? चोर भी इंसान होते हैं। मेहनत से रैकी कर, रात-रात भर नींद छोड़कर चोरी करने जाते हैं, और बदले में ग्रामीणों से लात-जूते और थप्पड़ मिलते हैं। आखिर कहां हैं मानवाधिकार संगठन?
आसनसोल के मेहनती युवक विजय कुमार और उनके पांच सहयोगी, जिन्हें अब चोर मंडली की उपाधि दी जा सकती है, सत्यारी टोली स्थित एक मकान में सामाजिक कार्य उर्फ चोरी के लिए रात के अंधेरे में पहुंचे। उद्देश्य था, अलमारी की सफाई और कैश-गोल्ड की वसूली। लेकिन तभी मकान मालिक जग गया और उसने चोरी में खलल डाल दी। शोर मचाया, उसे चुप कराने के लिए चोरों ने पहले उसका मुंह दबाया, फिर पास के कुएं तक ले जाकर डुबोने की कोशिश की, पर गांव वाले जाग गए। चार चोर पकड़े गए, दो गायब हो गए और चारों की जोरदार कुटाई हुई।
चोरों की पीड़ा: “हाथ टूट गया, पैसे भी छीन लिए”
गंभीर रूप से पीड़ित चोर विजय कुमार ने थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। बोला,
“हमें मारा गया, गालियां दी गईं, हमारा पैसा भी ले लिया! हम तो चोरी करने आए थे, डकैती के शिकार हो गए!”
अब सवाल उठता है – क्या अब चोरों को भी काम के दौरान सुरक्षा नहीं मिलेगी? क्या यह लोकतंत्र में अपराधियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?
थाना प्रभारी भी हुए कन्फ्यूज
पुलिस भी सोच में पड़ गई है, “एक तरफ ये चोरी के आरोपी हैं, दूसरी तरफ खुद पीड़ित भी बन बैठे हैं। कानूनी किताबें उलट-पलट कर देखनी पड़ रही हैं।”
ग्रामीण बोले: “पहले चोरी, फिर शिकायत… वाह रे न्याय!”
गांव वाले भी आश्चर्य में हैं। एक बुजुर्ग ने कहा, “पहले चोरी करने आए, फिर हम पर केस कर दिया! अब तो चोर ही एफआईआर करवाएंगे, और हमें बेल लेनी पड़ेगी!”
अब चोरों ने ‘चोर यूनियन’ बनाने का मन बना लिया है। मांग है:
- चोरी के समय सुरक्षा मुहैया कराई जाए
- ग्रामीणों के पास ‘नो-मारपीट’ बोर्ड लगाया जाए
- चोरी के बाद लूटपाट न की जाए (मतलब, चोरों से उनका पैसा न छीना जाए)
जहां पुलिस, चोर और पीड़ित तीनों एक ही घटना में उलझ जाएं, वहां न्याय व्यवस्था भी कहे, “अब भगवान ही मालिक है!”
[Disclaimer: इस समाचार सामग्री का स्वरूप व्यंग्यात्मक (Satirical) है, जिसका उद्देश्य केवल जनजागरूकता, सामाजिक टिप्पणी और मनोरंजन है। हम अपने पाठकों से अपेक्षा करते हैं कि वे इस सामग्री को उसके संदर्भ यानी हास्य और व्यंग्य में ही लें।]
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