व्यंग्य: झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर इरफ़ान अंसारी ने जैसे ही नया फरमान-ए-इरफ़ान जारी किया, राज्य की जनता को एहसास हो गया कि अब अस्पतालों में सिर्फ मरीज़ नहीं, उनकी बेबसी भी गोपनीय रखी जाएगी। मंत्री महोदय ने कहा कि अब कोई यूट्यूबर, व्हाट्सएप रिपोर्टर या मोबाइल लेकर घूमने वाला व्यक्ति अस्पताल में वीडियो नहीं बना सकेगा, क्योंकि स्वास्थ्य प्रणाली की गोपनीयता बचाना जरूरी है। यानी अब अस्पताल की टूटी टांगों के साथ टूटी दीवारें और लुंज-पुंज व्यवस्था कैमरे में कैद नहीं की जा सकेगी।
बिलकुल जैसे कोई होटल अपने किचन की गंदगी छुपाने के लिए नो एंट्री का बोर्ड टाँग देता है, वैसे ही मंत्री जी ने अस्पतालों के गेट पर नो मीडिया, नो मोबाईल, नो सवाल का डिजिटल दरवाज़ा लगा दिया है।
अब सवाल उठता है कि अनधिकृत पत्रकार कौन है? क्या वो जिसने पत्रकारिता की डिग्री नहीं ली है, पर माइक पकड़ कर सच्चाई की तह तक जाता है? या वो, जिसने डिग्री ली है मगर अब सिर्फ सरकार की प्रेस रिलीज़ को रिपोर्टिंग मान बैठा है? मंत्री जी के इस फ़रमान के बाद झारखंड प्रशासन में अब पत्रकार पहचान अधिकारी नाम का नया पद सृजित किया जा सकता है, जो हर अस्पताल के बाहर खड़ा होकर पत्रकारों से पूछेगा,
“बताइए, आपने पत्रकारिता कहां से की? UGC नेट क्लियर है? और ये माइक किस चैनल से मिला है, ज़रा बिल दिखाइए!”
एक तरफ कांग्रेस पार्टी देशभर में संविधान बचाओ यात्रा निकाल रही है, वहीं उसी पार्टी के मंत्री संविधान की धारा 19(1)(a) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ICU में भर्ती कर चुके हैं। डॉक्टर अंसारी तो जैसे प्रेस की आज़ादी को प्लास्टर में लपेटकर डिस्चार्ज कर देना चाहते हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी इस फरमान से थोड़ा चौंक गया होगा। मंत्रालय सोच में पड़ गया होगा कि जब हमने यूट्यूब पर रिपोर्टिंग पर रोक नहीं लगाई, तो मंत्री ने कौन सी X-ray मशीन में देखकर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया?
असल में, मंत्री जी का यह आदेश किसी भी रुग्ण लोकतंत्र में एक स्वस्थ कदम माना जा सकता है, बशर्ते लोकतंत्र पहले से वेंटिलेटर पर हो। जब अस्पतालों में मरीज़ों को दवा नहीं मिलती, डॉक्टर टाइम से नहीं आते, बिस्तर पर कुत्ते और छत से टपकते पानी की रिपोर्ट सोशल मीडिया पर वायरल होती है, तो मंत्री जी को बुखार आ जाता है।
अब झारखंड में अस्पताल में बीमार होना तो चलेगा, मगर बीमार व्यवस्था की रिपोर्टिंग करना गैरकानूनी होगा। मोबाइल में कैमरा खोलने से पहले FIR का डर होगा और पत्रकारिता करने से पहले आपको सरकारी पहचान पत्र लेना होगा, ठीक वैसे ही जैसे अस्पताल में एंट्री के लिए पर्ची कटता है।
हो सकता है, आने वाले दिनों में मंत्री जी एक ऐप भी लॉन्च करें, अधिकृत पत्रकार पहचानो, जिसमें पत्रकारों को OTP भेजकर यह साबित करना होगा कि वो विभाग की नाकामी नहीं, सिर्फ प्रेस विज्ञप्ति छापने आए हैं।
जनता से अपील: अब अस्पताल जाइए तो बस दवा लीजिए। बीमारी से लड़िए – सिस्टम से नहीं।
[Disclaimer : यह आलेख हास्य और व्यंग्य की शैली में लिखा गया है, किसी विशेष व्यक्ति या संस्था का अपमान करना उद्देश्य नहीं है। इस समाचार सामग्री का स्वरूप व्यंग्यात्मक (Satirical) है, जिसका उद्देश्य केवल जनजागरूकता, सामाजिक टिप्पणी और मनोरंजन है। हम अपने पाठकों से अपेक्षा करते हैं कि वे इस सामग्री को उसके संदर्भ यानी हास्य और व्यंग्य में ही लें।]
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