Jallianwala Bagh Massacre: आज भी गूंजती हैं… जलियांवाला बाग़ की वो चीखें

Jallianwala Bagh Massacre: The screams of Jallianwala Bagh still echo today

Jallianwala Bagh Massacre: 13 जून 1919 – एक तारीख जो भारतीय इतिहास में खून से लिखी गई। आज ही के दिन, अमृतसर के उस ऐतिहासिक जलियांवाला बाग़ में वो खौफनाक मंजर घटा था, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था। निहत्थे, मासूम, स्त्री-पुरुष और बच्चे, सब पर बरसाई गईं थीं गोलियाँ। उनके पास ना कोई हथियार था, ना हिंसा का कोई इरादा। बस एक आस थी, आज़ादी की।

जनरल डायर की वहशी सोच और औपनिवेशिक सत्ता की निर्दयी प्रवृत्ति ने उस दिन इंसानियत को शर्मसार कर दिया। बाग के चारों ओर ऊँची दीवारें थीं और एक ही संकरा दरवाज़ा, भागने की कोई राह नहीं। घास पर बैठे लोग, कुछ शांतिपूर्ण सभा के लिए आए थे, कुछ बच्चों को घुमा रहे थे, कुछ आशाओं के दीप जला रहे थे। लेकिन देखते ही देखते वो धरती श्मशान में बदल गई।

कहते हैं, लगभग 1650 गोलियाँ चलाई गईं। और हर गोली किसी का सपना छीन ले गई। मां की गोद में खेलता बच्चा, पति का हाथ थामे पत्नी, बुज़ुर्गों की आंखों में तिरती उम्मीद, सब लहूलुहान हो उठे। जलियांवाला बाग़ की वो मिट्टी आज भी लाल है… वहाँ खड़ी दीवारें आज भी गोलियों के निशान अपने सीने पर लिए खड़ी हैं। और उस कुएं की गहराई, जिसमें दर्जनों लोग जान बचाने को कूद गए थे, आज भी मौत की गवाही देती है।

Jallianwala Bagh Massacre: The screams of Jallianwala Bagh still echo today

लेकिन ये सिर्फ एक नरसंहार नहीं था। ये उस आग की शुरुआत थी, जिसने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ फेंकने की कसमें खाईं। इस हत्याकांड ने गांधी को असहयोग आंदोलन की राह पर मोड़ा, भगत सिंह के भीतर क्रांति की चिंगारी जलाई, और हर भारतीय के दिल में एक ज्वाला सुलगा दी… स्वतंत्रता की ज्वाला।

आज, जब हम आज़ाद हवा में सांस ले रहे हैं, तब यह ज़रूरी है कि हम उन मासूमों को याद करें, जो बिना किसी दोष के शहीद हो गए। यह स्मृति केवल शोक नहीं, चेतना है, एक प्रण है कि ऐसी निर्दयता फिर कभी न दोहराई जाए। जलियांवाला बाग़ सिर्फ एक बाग़ नहीं, यह भारत की आत्मा का वह कोना है, जहाँ हर दीवार पर लिखा है, “हम मरे ताकि तुम जी सको।”

आज की पीढ़ी को उस बाग़ की मिट्टी में बहा हुआ लहू याद दिलाना ज़रूरी है, ताकि हम स्वतंत्रता का मूल्य जानें और उसे कभी हल्के में न लें।

नमन उन अमर बलिदानियों को। जलियांवाला बाग़ की वीर भूमि को शत-शत प्रणाम।

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WASIM AKRAM
Author: WASIM AKRAM

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