Ranchi/Hazaribagh: झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ताजा छापेमारी में अवैध बालू खनन और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े उनके नेटवर्क का बड़ा खुलासा हुआ है। चौंकाने वाली बात यह है कि जब ईडी की टीम उनके ठिकानों पर दबिश दे रही थी, उसी वक्त उनके मोबाइल पर अवैध बालू से लदे ट्रक व ट्रैक्टरों के नंबरों के मैसेज आ रहे थे।
बालू कारोबार का डिजिटल सबूत
ईडी ने पूर्व मंत्री के मोबाइल में ऐसे कई मैसेज पाए हैं, जिनमें रोजाना के हिसाब से बालू लदे वाहनों की जानकारी भेजी जाती थी। खास बात यह है कि ये मैसेज किसी और ने नहीं, बल्कि स्थानीय पुलिस पदाधिकारियों ने ही भेजे थे। ईडी की टीम ने मैसेज का फील्ड में सत्यापन भी किया और मौके से बालू लदे ट्रक जब्त कर ड्राइवरों से पूछताछ की। पूछताछ में खुलासा हुआ कि पूरा संचालन योगेंद्र साव के निर्देश में होता था।
बड़कगांव में पूरा नेटवर्क, सहयोगी भी निशाने पर
ईडी की छापेमारी सिर्फ योगेंद्र साव तक सीमित नहीं रही। उनके करीबी माने जाने वाले मनोज दांगी और पंचम कुमार के ठिकानों पर भी कार्रवाई हुई। इन दोनों ने प्रारंभिक पूछताछ में स्वीकार किया कि वे योगेंद्र साव के निर्देश पर बालू कारोबार से जुड़े कार्यों को अंजाम देते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्व मंत्री ने एक पूरा नेटवर्क खड़ा कर रखा था, जिसमें पुलिस, कारोबारी और करीबी सहयोगी शामिल थे।
पहले भी जांच के घेरे में रहा है साव परिवार
मार्च 2024 में भी ईडी ने साव परिवार के ठिकानों पर छापा मारा था, जिसमें अवैध कमाई से जमीन और संपत्ति में किए गए निवेश का पता चला था। ईडी ने 2023 में ही उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था। अब ईडी उनके और उनके परिजनों के नाम पर दर्ज कंपनियों और शेल कंपनियों के जरिए किए गए निवेश की जांच कर रही है।
सीए और मोबाइल डेटा की जांच से मिल सकते हैं और खुलासे
इस बार की छापेमारी में योगेंद्र साव के सीए बादल गोयल के ठिकानों से दस्तावेज बरामद हुए हैं, जिनसे निवेश और फंड ट्रांसफर के नए सुराग मिल सकते हैं। साथ ही सभी जब्त मोबाइलों की क्लोनिंग की जा रही है और डाटा रिकवरी के बाद आने वाले दिनों में और भी खुलासे संभावित हैं। ईडी अब साव परिवार के सभी सदस्यों को पूछताछ के लिए समन करेगी।
आखिर क्यों चुप है प्रशासन?
इस पूरे घटनाक्रम में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि जब एक पूर्व मंत्री का इतना संगठित अवैध कारोबार चल रहा था और इसमें स्थानीय पुलिस की भूमिका भी सामने आ रही है, तो राज्य सरकार और प्रशासन की भूमिका क्या रही? क्या यह मिलीभगत है, या फिर प्रशासनिक लाचारी?
झारखंड में बालू माफिया का राजनीतिक संरक्षण कोई नई बात नहीं रही है। परंतु ईडी की यह कार्रवाई बताती है कि अब कानून की पकड़ इस गठजोड़ तक पहुंचने लगी है। इस मामले का निष्पक्ष और तेजी से निपटारा होना न केवल न्याय के लिए जरूरी है, बल्कि यह उदाहरण भी बने कि सत्ता से जुड़े लोग भी कानून के ऊपर नहीं हैं।
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