Raipur, 21 जुलाई: छत्तीसगढ़ की सियासत में कभी मजबूत माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) का राजनीतिक प्रभाव अब स्पष्ट रूप से कमजोर होता दिख रहा है। उनके बेटे चैतन्य बघेल की ₹3,200 करोड़ के कथित शराब घोटाले में गिरफ्तारी ने न सिर्फ राज्य की कांग्रेस इकाई को हिला कर रख दिया है, बल्कि राष्ट्रीय नेतृत्व को भी असहज स्थिति में डाल दिया है। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की इस कार्रवाई के बाद पार्टी के अंदर बघेल को जिस समर्थन की उम्मीद थी, वह भी क्षीण पड़ता दिख रहा है। हालिया रायपुर बैठक में उन्हें तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिसके बाद वे दिल्ली जाकर आलाकमान से समर्थन की आस में पहुंचे।
यह संकट केवल एक गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है। बघेल सरकार (2018–2023) के कार्यकाल में शराब, रेत खनन, ट्रांसफर-पोस्टिंग और सरकारी योजनाओं में कथित कमीशनखोरी के आरोप बार-बार उठते रहे। इन आरोपों ने जहां राज्य की आर्थिक साख को नुकसान पहुंचाया, वहीं निवेशकों का भरोसा भी डगमगा गया।
सबसे गंभीर आरोप नकली और मिलावटी शराब के जरिए जनस्वास्थ्य से जुड़े हैं। रिपोर्टों के अनुसार, शराब घोटाले में सैकड़ों लोगों की जान खतरे में डाली गई। इसे एक संगठित अपराध की तरह अंजाम दिया गया, जिसमें अधिकारियों और राजनीतिक रसूखदारों की संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है।
बघेल सरकार के दौरान औद्योगिक निवेश ठप रहा, जिससे रोजगार के अवसर सीमित हुए। युवाओं में निराशा फैली। वहीं अब, जब भाजपा सरकार खनन, ऊर्जा और आधारभूत संरचना परियोजनाओं को गति दे रही है, बघेल इन्हीं परियोजनाओं के विरोध में खड़े हैं — जिन्हें उन्होंने स्वयं सत्ता में रहते स्वीकृति दी थी।
इस बीच कांग्रेस ने 22 जुलाई को आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया है, जो व्यापार, परिवहन, आपात सेवाओं और छात्रों के हितों को प्रभावित कर सकता है। पार्टी का यह कदम जनभावनाओं के विरुद्ध जाता दिख रहा है और उसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली जाकर भूपेश बघेल पार्टी नेतृत्व का भरोसा फिर से जीत पाएंगे? क्या कांग्रेस आलाकमान इस विवाद पर चुप्पी साधे रहेगा या सामने आकर स्पष्ट रुख अपनाएगा और सबसे अहम क्या छत्तीसगढ़ की जनता एक और राजनीतिक नाटक का शिकार बनेगी या अब विकास और जवाबदेही की नई लकीर खिंचेगी?
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