Pakur-Dumka: पश्चिम बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (WBPDCL) द्वारा संचालित कोयला ढुलाई को लेकर झारखंड के दुमका जिले के काठीकुंड प्रखंड में जबरदस्त जनविरोध देखने को मिल रहा है। स्थानीय ग्रामीणों ने पाकुड़ के पंचुवाड़ा कोल माइंस से दुमका रेलवे रैक तक हो रही कोयला ट्रांसपोर्टिंग को अनिश्चितकाल के लिए ठप करा दिया है। यह विरोध अब संगठित जनआंदोलन का रूप ले चुका है। कोयला लदे वाहनों की आवाजाही रोक दी गई है, जिससे सड़कों पर हाईवा और ट्रकों की लंबी कतारें लग गई हैं। हालांकि आम वाहनों का आवागमन सामान्य बना हुआ है।
चांदनी चौक बना धरना स्थल , सांसद आवास के पास विरोध तेज
काठीकुंड बाजार के चांदनी चौक पर ग्राम प्रधान जॉन सोरेन के नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामीण धरने पर बैठ गए हैं। आंदोलनकारियों ने पंडाल गाड़ कर अनिश्चितकालीन आंदोलन की घोषणा की है। खास बात यह है कि धरना स्थल से कुछ ही दूरी पर दुमका सांसद नलिन सोरेन का आवास स्थित है। ग्रामीणों का दावा है कि उन्हें जनप्रतिनिधियों का समर्थन प्राप्त है। धरना स्थल पर पहुंचे जिला परिषद अध्यक्ष जॉयस बेसरा ने भी ग्रामीणों की मांगों का समर्थन किया और WBPDCL की कार्यशैली पर सवाल उठाए।
ग्राम प्रधान का आरोप: आदिवासी जमीन का शोषण, न प्रदूषण की परवाह, न मुआवजा
ग्राम प्रधान जॉन सोरेन ने कोयला कंपनी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि,
“WBPDCL आदिवासी समुदाय की जमीन का जबरन उपयोग कर रही है, न तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया अपनाई गई, न ही स्थानीय लोगों से सहमति ली गई। प्रतिदिन ट्रकों से करीब 60 हजार टन कोयले का परिवहन किया जा रहा है, जिससे सड़कें बदहाल हो चुकी हैं। उड़ती धूल और डीजल का धुआं लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है, कई लोग सांस की बीमारी से पीड़ित हो चुके हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार आग्रह के बावजूद न सड़क मरम्मत कराई गई, न पर्यावरणीय असर को लेकर कोई सर्वे कराया गया।
प्रशासन और कंपनी के बीच वार्ता जारी, हल की तलाश
धरना की सूचना मिलते ही काठीकुंड बीडीओ और थाना प्रभारी मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों की मांगों को समझने का प्रयास किया। इसके बाद अधिकारियों ने WBPDCL प्रबंधन से वार्ता की, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। ग्रामीणों ने साफ किया है कि जब तक भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी नहीं होती, पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई और प्रभावित परिवारों को मुआवजा नहीं दिया जाता और सड़क मरम्मत व सुरक्षा उपाय सुनिश्चित नहीं किए जाते धरना समाप्त नहीं होगा।
WBPDCL के खिलाफ आदिवासी ग्रामीणों का यह आक्रोश राज्य की विकास परियोजनाओं में सामाजिक सहमति और पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। प्रशासन के लिए यह महज़ कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि जनविश्वास और अधिकारों का मुद्दा है, जिसे संवेदनशीलता के साथ हल किया जाना चाहिए।
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