विश्व तंबाकू निषेध दिवस विशेष: ज़हर की खुली बिक्री: कोटपा कानून और गुटखा प्रतिबंध के बावजूद तंबाकू का बढ़ता जाल

Open sale of poison: Tobacco's network growing despite COTPA law and gutkha ban

विश्व तंबाकू निषेध दिवस विशेष: हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है, लोगों को तंबाकू सेवन के खतरों के प्रति जागरूक करना और इस जानलेवा लत से मुक्ति के प्रयासों को बल देना। हालांकि सरकार, समाज और स्वास्थ्य संगठनों के संयुक्त प्रयासों के बावजूद, भारत और विशेष रूप से झारखंड-बिहार जैसे राज्यों में तंबाकू उत्पादों की बिक्री और खपत पर लगाम कसना अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

तंबाकू: एक धीमा ज़हर

तंबाकू का सेवन चाहे धूम्रपान के रूप में हो या गुटखा, खैनी और ज़र्दा जैसे चबाने योग्य उत्पादों के रूप में – यह शरीर के हर अंग पर घातक प्रभाव डालता है। कैंसर, हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारियाँ, हाइपरटेंशन और कई अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की जड़ तंबाकू ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, तंबाकू के सेवन से हर साल दुनियाभर में 80 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है, जिनमें से लगभग 13 लाख केवल भारत में होते हैं।

झारखंड में गुटखा पर प्रतिबंध! फिर भी बिक्री जारी

झारखंड सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य हित में कई गुटखा उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट के तहत कई ब्रांड्स के पान मसालों और तंबाकू मिश्रित उत्पादों को “स्वास्थ्य के लिए हानिकारक” घोषित किया गया है। इसके बावजूद, इन प्रतिबंधित उत्पादों की बाजारों में धड़ल्ले से बिक्री जारी है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी बाजारों तक, दुकानों में छिपाकर या वैकल्पिक नामों से यह जहर अब भी लोगों तक पहुँच रहा है। कानूनों के क्रियान्वयन में लापरवाही, निगरानी की कमी और कुछ स्तरों पर मिलीभगत इस समस्या को और गंभीर बना रही है।

क्या कोटपा कानून केवल कागज़ी सख़्ती?

भारत सरकार ने तंबाकू नियंत्रण हेतु कोटपा (COTPA) – “The Cigarettes and Other Tobacco Products Act, 2003” लागू किया, जो सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध, तंबाकू उत्पादों पर चेतावनी चित्र, विज्ञापन पर रोक और स्कूल-कॉलेजों के 100 गज के दायरे में बिक्री पर प्रतिबंध जैसे प्रावधानों को लागू करता है। लेकिन विडंबना यह है कि इस कानून का उल्लंघन आम होता जा रहा है। छोटे दुकानदार से लेकर बड़े विक्रेता तक, बिना किसी भय के खुलेआम गुटखा और सिगरेट बेचते नजर आते हैं। स्कूलों के पास भी दुकानों पर रंग-बिरंगे गुटखों की पंक्तियाँ बच्चों को लुभाती हैं। यह स्थिति केवल कानून की अनदेखी नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।

क्या होना चाहिए आगे?
  • सख्त निगरानी और दंड: कोटपा और गुटखा प्रतिबंध कानूनों को लागू करने में प्रशासन को सक्रिय और सख्त रवैया अपनाना होगा। दोषी विक्रेताओं पर भारी जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने जैसे कदम जरूरी हैं।
  • स्कूल-कॉलेजों के पास ज़ीरो टॉलरेंस: युवाओं को लत से बचाने के लिए शिक्षण संस्थानों के आसपास तंबाकू उत्पादों की बिक्री को पूर्णतः बंद करना होगा।
  • जनजागरूकता अभियान: टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया, और जनसंपर्क माध्यमों से लोगों को तंबाकू के दुष्परिणामों की जानकारी देना और वैकल्पिक उपायों जैसे निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी को प्रोत्साहित करना ज़रूरी है।
  • छोटे दुकानदारों को वैकल्पिक आजीविका से जोड़ना: तंबाकू बेचने वाले छोटे व्यापारियों को वैकल्पिक रोजगार विकल्पों से जोड़कर इस लत की आपूर्ति श्रृंखला को तोड़ा जा सकता है।

तंबाकू से होने वाली मौतें रोकी जा सकती हैं, बशर्ते समाज और सरकार मिलकर प्रभावी कदम उठाएं। कोटपा कानून और गुटखा प्रतिबंध तभी कारगर होंगे जब उनके पालन में सख्ती और जागरूकता दोनों हों। विश्व तंबाकू निषेध दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिन न रह जाए, बल्कि एक आंदोलन का रूप ले, यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।

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