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धराली गांव में खीरगंगा नदी का रौद्र रूप, बादल फटने से 4 की मौत, 70 लापता; IIT रुड़की के वैज्ञानिक बोले, जलवायु परिवर्तन बढ़ा रहा खतरा
Uttarkashi, 6 अगस्त: उत्तराखंड की शांत हर्षिल घाटी मंगलवार को एक बार फिर काले बादलों की गर्जना में डूब गई। धराली गांव के ऊपर खीरगंगा क्षेत्र में दोपहर 1:50 बजे बादल फटने की घटना ने केदारनाथ की 2013 की जल प्रलय की भयावह यादें ताजा कर दीं। कुछ ही सेकंड में नदी ने रौद्र रूप धारण कर लिया और धराली का मुख्य बाजार, होटल, दुकानें, घर और यहां तक कि श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक कल्प केदार मंदिर तक मलबे में समा गया।

वैज्ञानिकों ने चेताया, विक्षोभ का बदला रुख खतरे की घंटी
IIT रुड़की के हाइड्रोलॉजी विभाग के प्रो. अंकित अग्रवाल ने चेताया है कि इस भीषण आपदा के पीछे वही पैटर्न है जो 2013 में केदारनाथ में देखा गया था, भूमध्य सागर से उठे पश्चिमी विक्षोभ का हिमालय से टकराना। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण अब ये विक्षोभ मध्य भारत से होते हुए सीधे हिमालय की ओर बढ़ रहे हैं और मानसून के साथ मिलकर अत्यधिक नमी और ऊर्जा ला रहे हैं।
“अब विक्षोभ जून से अगस्त में ही सक्रिय हो रहे हैं, जो पहले अक्तूबर-दिसंबर में होते थे। यह बदलाव हिमालयी राज्यों के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है,” – प्रो. अंकित अग्रवाल, IIT रुड़की
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, घटना के महज 20 सेकंड के भीतर खीरगंगा नदी का मलबा मुख्य बाजार की ओर मुड़ गया। लोग भागते रहे, लेकिन सैलाब ने सब कुछ रौंद डाला। कई होटल, रिसॉर्ट, दुकानें, घर और सेब के बाग उजड़ गए। चीख-पुकार के बीच पूरा बाजार मलबे के ढेर में तब्दील हो गया।
देर शाम तक 130 लोगों को रेस्क्यू किया गया। 4 मौतों की पुष्टि हुई है, जबकि 70 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं। 30 से अधिक भवन, होटल, घर, दुकानें बह चुके हैं। SDRF, NDRF, सेना और पुलिस की टीमें राहत-बचाव में लगी हैं। केंद्र से 2 MI हेलिकॉप्टर और 1 चिनूक की मांग की गई है, जबकि यूकाडा ने 2 निजी हेलिकॉप्टर तैयार रखे हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि राहत और बचाव कार्यों में कोई कोताही न हो। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और सेना से समन्वय किया जा रहा है। प्रभावितों की हरसंभव सहायता की जाएगी। जिला अधिकारी प्रशांत आर्य और एसपी सरिता डोवाल ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। हर्षिल में राहत शिविर बनाए गए हैं। बचाव और पुनर्वास के कामों का आकलन किया जा रहा है।
हिमालयी राज्यों के लिए अलार्म बेल
प्रो. अग्रवाल का कहना है कि हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में भी यही पैटर्न देखने को मिला है। सितंबर 2023 में हिमाचल की तबाही भी इसी विक्षोभ के कारण हुई थी। पिछले 25 वर्षों में यह पहला मौका है जब पश्चिमी विक्षोभ इतनी जल्दी और इतनी ताकत के साथ सक्रिय हुआ है।
“ये घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं, बल्कि हिमालयी राज्यों के लिए एक खतरनाक सामान्य बनती जा रही हैं।”
प्रकृति का संदेश या चेतावनी?
धरती का मिजाज बदल रहा है और यह बदलाव महज मौसम की नहीं, हमारे भविष्य की कहानी लिख रहा है। उत्तरकाशी की यह त्रासदी एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि हम प्रकृति के प्रति कितने असंवेदनशील हो चुके हैं। शायद यह केवल बादल फटने की घटना नहीं थी, यह एक चेतावनी थी, “अब भी नहीं जागे, तो भविष्य नहीं बचेगा।”
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