Jagannath Rath Yatra 2025: आज जब भारत के कोने-कोने में “जय जगन्नाथ” की गूंज सुनाई दे रही है, तो यह केवल एक धार्मिक उद्घोष नहीं, बल्कि उस आध्यात्मिक परंपरा की पुनः पुष्टि है, जो हजारों वर्षों से जनमानस की चेतना में बसी हुई है। भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा महज एक उत्सव नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के विश्वास, संस्कृति और अध्यात्म का जीवंत स्वरूप है।
हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाली जाने वाली यह यात्रा ओडिशा के पुरी नगर से शुरू होकर अब पूरे देश और यहां तक कि विदेशों में भी श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बन चुकी है। रथ यात्रा के दिन जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा अपने भव्य रथों पर सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
रथ यात्रा का इतिहास और मान्यता: जब भगवान आते हैं भक्तों के बीच
रथ यात्रा का इतिहास पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों रूपों में अत्यंत समृद्ध है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण जैसे शास्त्रों में इस यात्रा का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें अपने साक्षात दर्शन का सौभाग्य प्रदान करते हैं। पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है और यह रथ यात्रा वर्ष का सबसे बड़ा आयोजन माना जाता है। हजारों वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है और समय के साथ इसकी लोकप्रियता और पवित्रता में केवल वृद्धि ही हुई है।
तीनों रथों की विशेषता और पहचान
रथ यात्रा में तीन अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं, जिनमें हर रथ का रंग, नाम, आकार और प्रतीक अलग होता है। ये रथ केवल वाहन नहीं, बल्कि भगवानों के दिव्य स्वरूप के प्रतीक माने जाते हैं।
- बलराम जी का रथ – तालध्वज
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- रंग: लाल और हरा
- पहिए: 14
- ध्वज: तलवार का प्रतीक (ताल)
- स्थान: रथ के अगले भाग में बलराम की मूर्ति
यह रथ वीरता, शक्ति और संकल्प का प्रतीक है। बलराम जी कृषक समाज और श्रम संस्कृति के आराध्य माने जाते हैं।
- सुभद्रा जी का रथ – दर्पदलन या पद्म रथ
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- रंग: काला/नीला और लाल
- पहिए: 12
- ध्वज: कमल का प्रतीक
- स्थान: रथ के मध्य भाग में सुभद्रा जी की मूर्ति
यह रथ सौम्यता, करुणा और मातृत्व का प्रतीक है। इसे अहंकार का दमन करने वाला (दर्पदलन) भी कहा जाता है।
- भगवान जगन्नाथ का रथ – नंदीघोष या गरुड़ध्वज
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- रंग: लाल और पीला
- पहिए: 16
- ध्वज: गरुड़ का प्रतीक
- स्थान: रथ के अंतिम भाग में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
यह रथ भव्यता, करुणा और लोककल्याण का प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ को विष्णु का कल्कि अवतार भी कहा जाता है।
गुंडिचा मंदिर यात्रा का विशेष महत्व
तीनों भगवान अपने रथों में सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर कहा जाता है। वहां नौ दिनों तक भगवान विश्राम करते हैं और फिर बहुड़ा यात्रा के रूप में पुनः मुख्य मंदिर में लौटते हैं। इन नौ दिनों के दौरान विशेष पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
आस्था और भक्ति की अद्वितीय झलक
पुरी की रथ यात्रा का सबसे मार्मिक दृश्य तब होता है जब लाखों श्रद्धालु भगवान के रथ को खींचने के लिए उमड़ पड़ते हैं। माना जाता है कि रथ खींचने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है। इस रथ खींचने में राजा से लेकर आम आदमी तक, सब एक पंक्ति में खड़े होते हैं। यही रथ यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता है समानता और समरसता।
पुरी से वैश्विक मंच तक
हाल के वर्षों में रथ यात्रा की लोकप्रियता भारत तक सीमित नहीं रही है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों में भी ISKCON संस्था और भारतीय समुदाय द्वारा रथ यात्राएं आयोजित की जाती हैं। इससे न केवल भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रसार हुआ है, बल्कि सांस्कृतिक राजदूत के रूप में भगवान जगन्नाथ की छवि और भी प्रबल हुई है।
रथ यात्रा का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
रथ यात्रा एक ओर जहाँ आध्यात्मिक चेतना को जागृत करती है, वहीं दूसरी ओर यह सामाजिक समरसता, एकता और भाईचारे का सशक्त संदेश भी देती है। जाति, धर्म, वर्ग, भाषा की दीवारें टूट जाती हैं और केवल एक ही आवाज गूंजती है – जय जगन्नाथ। इस आयोजन में संगीत, नृत्य, चित्रकला, हस्तशिल्प और लोक परंपराओं का मेल भी देखा जाता है, जो इसे एक लोक-सांस्कृतिक उत्सव के रूप में स्थापित करता है।
भक्ति की राह पर चलता समाज
रथ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह उस सामाजिक चेतना का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें भगवान केवल मंदिर में पूजनीय नहीं, बल्कि हर भक्त के जीवन में साक्षात उतरते हैं। आज जब चारों ओर तनाव, असमानता और भौतिकता का बोलबाला है, तब भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा हमें स्मरण कराती है कि सच्चा सुख सेवा, श्रद्धा और समानता में है। इस वर्ष भी रथ यात्रा ने भक्तों के हृदय को एक सूत्र में पिरो दिया है। जैसे-जैसे रथ आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे श्रद्धा की डोर और मजबूत होती जाती है। यही इस यात्रा का सबसे बड़ा चमत्कार है।
जय जगन्नाथ!
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